''हत्या-अपहरण, डकैती या बलात्कार,
ऐसा लगे ह़र घटना ही आम हो गई ।
कुछ लोग तो लड़ें सिद्धांत हेतु किन्तु कुछ,
के लिए तो परेशानी खामाखाम हो गई ॥
जिंदगी अमोल किन्तु आज कोई भी न मूल्य,
यह देख-देख के बुद्धि ही जाम हो गई ।
हत्या-अपराध, रेल लाइन उड़ाई खूब,
नक्सली हिंसा अब बेलगाम हो गई ॥''
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