''सोचते नहीं हैं निकलेगा कैसा परिणाम,
जब मन चाहे तब मुँह खोलते थरूर ।
अक्खड़ कबीर ने कहा था कभी किन्तु, बात
पहले स्वयं दिल में न तोलते थरूर ॥
जन प्रतिनिधि आप करिए न कोई पाप,
ठीक या ग़लत मन में टटोलते थरूर ।
कद का नहीं है भान रखते न कोई ज्ञान,
इसलिए मन में जो आता बोलते थरूर ॥''
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