''अपने वचन जो फिरता नहीं था किन्तु,
कर आजकल कैसा व्यवहार रहा है ।
बड़े बड़े दिग्गजों के जिसने शिकार किये,
आज प्यादों से वो ख़ुद हो शिकार रहा है ॥
समस्याओं के तो समाधान होते घर में ही,
किन्तु दिखता न कोई जो विचार रहा है ।
सियासत भी अजीब खेल, हारा बादशाह,
अपने वज़ीर को ही ख़ुद मार रहा है ॥''
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