''पेट हेतु अपराध करने लगें ग़रीब,
इतने ख़राब तो हालात मत कीजिये ।
एक आम आदमी के दर्द को समझियेगा,
ख़त्म अपने यूँ जज़्बात मत कीजिये ॥
नूतन प्रभात लाने चले जनता के लिए,
किन्तु अब दिन में ही रात मत कीजिये ।
पहले से ही गले में जान अटकी है, और
मँहगाई बढ़ने की बात मत कीजिये ॥''
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