''जिनको दो वक़्त के निवाले भी नसीब नहीं,
छत नहीं, वस्त्र तार तार दिख रहे हैं ।
उनके ही स्वाभिमान को बढ़ाने के निमित्त,
दलित स्मारक हजार दिख रहे हैं ॥
स्मारक बनबाने का उन्हें जुनून और,
हमें भूखे पेट बार बार दिख रहे हैं ।
बन ही गए तो करनी पड़ेगी देखभाल,
इसलिए छूट के आसार दिख रहे हैं ॥''
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