''कहो कैसे खुशियों के दीपक जलायें जब,
बची दियासलाई में सिर्फ एक तीली है ।
हमें मँहगाई ने रुलाया है बहुत अब,
एक खाली जेब वो भी आँसुओं से गीली है ॥
जनता का दर्द सुनना ही नहीं चाहती है,
कहीं शायद सियासत ने भंग पीली है ।
लगता है रंग में उमंग ही नहीं है शेष,
क्योंकि होलिका पे सबकी ही जेब ढीली है ॥''
बची दियासलाई में सिर्फ एक तीली है ।
हमें मँहगाई ने रुलाया है बहुत अब,
एक खाली जेब वो भी आँसुओं से गीली है ॥
जनता का दर्द सुनना ही नहीं चाहती है,
कहीं शायद सियासत ने भंग पीली है ।
लगता है रंग में उमंग ही नहीं है शेष,
क्योंकि होलिका पे सबकी ही जेब ढीली है ॥''
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