''अधिकार के लिए झगड़ना तो जानें किन्तु,
स्वयं कर्म हेतु किसी ने दो बोल कहे हैं ।
भूखे पेट का निवाला छीनने में सिद्धहस्थ,
दुःख में गरीब के कभी दो आँसू बहे हैं ॥
शोषण में, स्वार्थ में प्रवीण हैं सियासी लोग,
दर्द सिर्फ आम जनता ने यहाँ सहे हैं ।
कोई समस्या का समाधान खोजता ही नहीं,
एक-दूसरे पे थोपने के आदी रहे हैं ॥''
स्वयं कर्म हेतु किसी ने दो बोल कहे हैं ।
भूखे पेट का निवाला छीनने में सिद्धहस्थ,
दुःख में गरीब के कभी दो आँसू बहे हैं ॥
शोषण में, स्वार्थ में प्रवीण हैं सियासी लोग,
दर्द सिर्फ आम जनता ने यहाँ सहे हैं ।
कोई समस्या का समाधान खोजता ही नहीं,
एक-दूसरे पे थोपने के आदी रहे हैं ॥''
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