''आज की सियासत को फ़िक्र ही नहीं ज़रा भी,
कौन है सुने जो उस ड्रेगन की बीन को ।
पहले से रहते नहीं सजग और फिर,
मान लेते सीमा-रेखा बने जो नवीन को ॥
यदि हम शुरू से ही करें प्रतिरोध तब,
समझा सकेंगे षड्यंत्रकारी चीन को ।
हम काश्मीर से ना ले सके सबक अब,
धीरे-धीरे चीन दाबे जा रहा ज़मीन को ॥''
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