''आज तक सोचिये ज़रा भी न सुधार हुआ,
बीते हैं अनेक वर्ष हमसे ख़ता हुए ।
सब ये समझते हैं मंज़िल मिले ना मिले,
जैसे हम कोई भटका-सा रास्ता हुए ॥
जाने हमसे क्यूँ ठोस कार्रवाई होती नहीं,
गुज़रा समय कितना ही वार्ता हुए ।
छोड़िए सियासत को फौज तक को न पता,
अपने ही फौजी कब-कब लापता हुए ॥''
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