''जाकर के जानवरों को भी देख लेना कभी,
बैल खींचते हैं बैलगाड़ी, पेट के लिए ।
और मज़दूर इसलिए करता है श्रम,
मिलती है उसको दिहाड़ी, पेट के लिए ॥
कहीं ना कहीं से कोई राह तो निकाल लेगा,
कोई कितना ही हो अनाड़ी, पेट के लिए ।
वहाँ राजनीति में भरे हुए अनेक दाग़ी,
यहाँ बाग़ी हुए हैं खिलाड़ी, पेट के लिए ॥''
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