मनमोहन जी मन मोहने में हो प्रवीण,
किन्तु ऐसे मृदु व्यवहार मत छोड़िये ।
कभी होंगीं खुशियाँ बहुत पास कभी ग़म,
किन्तु कभी मन में दरार मत छोड़िये ॥
गुरु गोविन्द की ही परम्परा से आए आप,
भूलकर कभी संस्कार मत छोड़िये ।
भले ही चुनावी खूब तल्खियाँ रहीं हों पर,
मनमोहन जी शिष्टाचार मत छोड़िये ॥"
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