"ईश्वर ने दिखलाया कैसा रौद्र रूप देखो,
कितनों के जीवन का सूर्य अस्त हो गया ।
फसलों को देखा जब बरबाद होते हुए,
धरती का ईश्वर किसान त्रस्त हो गया ॥
घोर परिश्रम किया, सपना संजोया किन्तु,
सपने का क्षण में महल ध्वस्त हो गया ।
कुदरत का कहर ले गया चौबीस जान,
जनजीवन समस्त अस्त-व्यस्त हो गया ॥"
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