"इस दौर में करें क्या बात भी सियासत की,
ये तो सारी शर्म-हया बेचकर खा गयी ।
बापू की धरोहर तो लानीं सरकार को थीं,
किन्तु चुप बैठ नाक अपनी कटा गयी ॥
आगे आया भारती का लाल करने कमाल,
चहुँ ओर जब कि उदासी एक छा गयी ।
माल्या ने खरीदी ख़ुद बापू कि धरोहर तो,
श्रेय लूटने को सरकार आगे आ गयी ॥"
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