"आज राजनीति में है सिर्फ षड़यंत्र शेष,
लुप्त हो रहे हैं कहीं प्यार ,मनुहार भी ।
देखिये कि धीरे-धीरे कितना हुआ पतन,
बिसरा चुके हैं सभ्यता भी, संस्कार भी ॥
आँखें बंद कर दौड़े चले जा रहे हैं, इन्हें
दिखता नहीं है आगे घोर अन्धकार भी ।
सरकार तानाशाही दिखा सकती है किन्तु,
लोकतंत्र से तो हार जाती सरकार भी ॥"
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