"चाहे आशियाना किसी का रहे न रहे, चाह
ईंट की हो किसी का भी घर तोड़ लेती है ।
धाराएँ जो तीव्र गतिमान हों विकास ओर,
निज स्वार्थ हेतु धाराओं को मोड़ लेती है ॥
लक्ष्य सिर्फ एक, दूसरा कोई सफल न हो,
भले ख़ुद अपना ही भाग्य फोड़ लेती है ।
लेकर कहीं की ईंट और रोड़ा ले कहीं का,
भानुमती सदा कुनबे को जोड़ लेती है ॥"
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