"जिन भेड़ियों के लिए हथकडियाँ ज़रूरी,
कितनी बड़ी है बेबसी वे खुले हुए हैं ।
इनकी रगों में देशभक्ति का नहीं है खून,
सिर्फ देशद्रोह के कीटाणु घुले हुए हैं ॥
आत्मा भी कीचड़ में इनकी सनी हुई है,
किन्तु बाहर से ये दिखाते धुले हुए हैं ।
सभी चाहते हैं, हो वतन में अमन किन्तु,
यही तो फिज़ा बिगाड़ने पे तुले हुए हैं ॥"
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