"नफ़रत के जो बीज दिल में पनप जांय,
फिर वाणी में मिठास घोल सकते नहीं ।
चलता इशारों पे हो कानून जहाँ भी वहां,
कभी सच और झूठ तोल सकते नहीं ॥
बात पे ना कोई गौर, तानाशाही का हो दौर,
डर इतना कि मुँह खोल सकते नहीं ।
किसको बगावत समझ लें पता ही नहीं,
मजबूरी ये कि सच बोल सकते नहीं ॥"
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