"आम जनता को लड़वाते हैं सियासी लोग,
आपस में कैसी-कैसी खिचड़ी पकाते हैं ।
पाँच साल तो छकाते, आता जो चुनावी दौर,
वोटरों के आगे फिर शीश भी झुकाते हैं ।।
आते हैं रिझाते, अपनापन जताते, ये
दिखाते वादा अपना हमेशा ही निभाते हैं ।
पलकों बिठाते, प्यार बरसाते, पिघलाते,
भोली जनता की भावनाओं को भुनाते हैं ।।"
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