"वक़्त की है बात जब स्वार्थ सधने लगा तो,
जिससे घृणा थी उससे भी प्यार हो गया ।
राष्ट्रवाद से भरा जो शत्रु को रहा कटार,
देखियेगा एक क्षण में उदार हो गया ।।
बाबरी के ध्वंस को जो दूसरों पे थोपता था,
मजबूरियों में ख़ुद ज़िम्मेदार हो गया ।
उम्र भर राजनीति का किया शिकार किन्तु,
आज वही राजनीति का शिकार हो गया ।।"
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