"बहता है धन खेल में जो पानी की तरह,
अन्दर से तब टूटते श्रमिक जाते हैं ।
इसलिए परिश्रम पे नहीं रहा यक़ीन,
खेल की ही ओर बढ़ते अधिक जाते हैं ।।
सोचना खिलाड़ी बड़े या कि भारती के वीर,
शौर्य की जो नूतन कहानी लिख जाते हैं ।
सैनिकों के बलिदान को हैं सिर्फ़ दस लाख,
लेकिन करोड़ों में खिलाड़ी बिक जाते हैं ।।"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment