"है बसन्त-पञ्चमी उपासना माँ तेरी, मेरे
जैसे ढीट को ज़रा-सी भक्ति भी दे शारदे ।
पाप दूर ही रहे, सदैव पुण्य का हो साथ,
माया-मोह से मुझे विरक्ति भी दे शारदे ।।
सुन लें तो शत्रुओं के दिल भी दहल जाँय,
ऐसी मुझको स्वराभिव्यक्ति भी दे शारदे ।
या तो दुर्गुणों-गुणों की देती ना समझ, दी तो
दुर्जनों के ध्वंस हेतु शक्ति भी दे शारदे ।।"
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