"श्रमजीवियों ने परिश्रम जो पाई कभी,
हँसी-खुशी, आपस का प्यार मत छीनिए ।
आपने स्वयं के तो वेतन बढ़ाये, किन्तु
श्रम साधकों के अधिकार मत छीनिए ।।
वेतन के साथ मुस्कान लौटती है घर,
दुःख-दर्द का ये उपचार मत छीनिए ।
मंदी का ये रुख देखते हुए भले पगार,
कम हो परन्तु रोज़गार मत छीनिए ।।"
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