"बलिदानी, त्यागी औ तपस्वी जन्म लेते रहे ,
ऐसी रही भारत महान की परम्परा !
भूखे रहे या कि रोटी घास की चुनीं हों किंतु,
झुकी कहाँ राष्ट्र स्वाभिमान की परम्परा !!
शत्रुओं को भूलकर देते नहीं क्षमा दान,
ये थी राष्ट्रद्रोह के निदान की परम्परा !
दो तो युद्ध में शहीद, दो चुने गए दिवार*,
टूटने नहीं दी बलिदान की परम्परा !!"
* गुरु गोविन्द सिंह के चार बेटे
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