''जैसे-जैसे मंहगाई बढ़ती ही जा रही, जो
यही रहा एक दिन नींद भी खो जायेगी ।
रोज़मर्रा की ज़रूरतें भी पूरी ना हुई तो,
आत्महुतियों के बीज दिल में बो जायेगी ॥
क्या पता था जिसे चुनकर भेजा सेवा हेतु,
वह टोली आँख बंद करके सो जायेगी ।
बंद सब्सिडी हुई सिलेंडर पे फिर केंद्र,
कर्मचारिओं को गैस मंहगी हो जायेगी ॥''
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