''राजनीति में हुई है वाह ! की बढ़ोत्तरी तो,
एक आम आदमी की आह ! की बढ़ोत्तरी ।
यानी कि सियासत में जीने की जिजीविषा तो,
जनता के मरने की चाह की बढ़ोत्तरी ॥
सोचिये सियासत में है समाजसेवा शेष ?
देश में क्यों होती आत्मदाह की बढ़ोत्तरी ।
यहाँ पे निवाला भी नसीब नहीं और वहाँ,
बीस हज़ार की प्रतिमाह की बढ़ोत्तरी ॥''
एक आम आदमी की आह ! की बढ़ोत्तरी ।
यानी कि सियासत में जीने की जिजीविषा तो,
जनता के मरने की चाह की बढ़ोत्तरी ॥
सोचिये सियासत में है समाजसेवा शेष ?
देश में क्यों होती आत्मदाह की बढ़ोत्तरी ।
यहाँ पे निवाला भी नसीब नहीं और वहाँ,
बीस हज़ार की प्रतिमाह की बढ़ोत्तरी ॥''
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