''नया वर्ष नया उत्साह लेके आया किन्तु,
साथ-साथ हादसों ने भी किया प्रवेश है ।
कोख उजड़ी औ कितनों का सिन्दूर न रहा,
आगे और जाने क्या-क्या देखने को शेष है ॥
आम आदमी की न सुरक्षा रही शेष किन्तु,
राजनीति में तो हर सुविधा विशेष है ।
देश में अनेक हादसे, न समाधान एक,
ऐसा लगने लगा ये हादसों का देश है ॥''
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