''दंगल में दो मिनट भी नहीं टिके हो मित्र,
शासन से ठोंकने की ताल क्या ज़रूरी थी ।
एक झटके में तलवार छोड़ बैठे आप,
वापस यूँ लौटने की ढाल क्या ज़रूरी थी ॥
सामना भी करने की ताक़त नहीं थी फिर,
क्रान्तिकारियों सी कहो चाल क्या ज़रूरी थी ।
केवल दो दिन में ये परिणाम देना था तो,
क्यों की शुरूआत हड़ताल क्या ज़रूरी थी ॥''
शासन से ठोंकने की ताल क्या ज़रूरी थी ।
एक झटके में तलवार छोड़ बैठे आप,
वापस यूँ लौटने की ढाल क्या ज़रूरी थी ॥
सामना भी करने की ताक़त नहीं थी फिर,
क्रान्तिकारियों सी कहो चाल क्या ज़रूरी थी ।
केवल दो दिन में ये परिणाम देना था तो,
क्यों की शुरूआत हड़ताल क्या ज़रूरी थी ॥''
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